લેબલ रोम क्या है और इसके प्रकार-What Is ROM In Hindi 2 સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
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रोम क्या है और इसके प्रकार-What Is ROM In Hindi 2

रोम क्या है और इसके प्रकार-What Is ROM In Hindi 2

 

रोम क्या है और इसके प्रकार-What Is ROM In Hindi

कंप्यूटर में दो तरह की मेमोरी होती हैं जो प्राइमरी और सेकेंडरी हैं। प्राइमरी मेमोरी दो तरह की होती है एक RAM और दूसरी ROM. जब भी आप कोई मोबाइल या लैपटॉप खरीदते हैं तो आप दुकानदार से यह सवाल जरुर पूंछते हैं कि इसमें कितने GB RAM है। आजकल आपको RAM और ROM के बारे में बहुत सुनने को मिलता है और अधिक टार में आपको फोन की Specifications में RAM और ROM नाम अधिक दिखाई देता है।

ROM :

ROM का पूरा नाम *Read Only Memory* होता है। यह कंप्यूटर से जुड़े हुए हिस्सों में से कंप्यूटर का एक अहम हिस्सा होती है। दोस्तों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे कंप्यूटर या मोबाइल में 2 तरह की मेमोरी होती हैं जिन्हें RAM और ROM के नाम से जाना जाता है। ROM को permanent storage भी कहा जाता है क्योंकि इसमें data store होता है।

होता क्या है कि जब हम अपने मोबाइल या कंप्यूटर को on करते हैं तो RAM work करना शुरू कर देती है और जब हम कंप्यूटर या मोबाइल को पॉवर ऑफ करते हैं तो पूरा डाटा ROM में store हो जाता है। ROM को हम एक्सटर्नल भी ऐड कर सकते हैं जैसे मोबाइल में चिप के रूप में कंप्यूटर में पेन ड्राइव, हार्ड ड्राइव आदि भी ROM ही हैं।

उदहारण के लिए जब हम कोई मोबाइल या computer purchase करने के लिए जाते हैं तब हम उसकी इंटरनल मेमोरी चेक करते हैं ऐसा होता है कि Internal memory तो होती है 32 GB लेकिन दिखती है 28 या 29 GB तो जो इनके बीच में थोडा सा डिफरेंस होता है उसको ही ROM कहा जाता है।

तो जैसा कि इसका पूरा नाम है read only memory है तो इसको हम सिर्फ read ही कर सकते हैं क्योंकि इसमें एक fixed program रहता है जिसका हम कुछ भी नहीं कर सकते और न ही इसको change कर सकते हैं। यह कंप्यूटर की in-built मेमोरी होती है जिसका डाटा केवल रीड ऑनली होता है और उसमें कुछ भी write और modify नहीं किया जा सकता है।

ROM कंप्यूटर से जुड़े हुए हिस्सों में से एक है। यह कंप्यूटर का एक मुख्य भाग है। यह एक प्राथमिक स्टोरेज डिवाइस है। यह चिप के आकार की होती है और मदरबोर्ड से जुड़ी होती है। यह कंप्यूटर को बूटअप करता है और जब आप कंप्यूटर को दूसरी बार ऑन करते हैं तो यह आपके डाटा को नई जिंदगी देती है।

RAM :

RAM का पूरा नाम Random Access Memory है। यह किसी भी कंप्यूटर या डिवाइस के लिए सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। RAM का प्रयोग डाटा स्टोर करने के लिए किया जाता है लेकिन यह तभी तक स्टोर रहता है जब तक पॉवर ऑन रखते हैं। जब पॉवर ऑफ हो जाती है तो इसमें स्टोर डाटा खत्म हो जाता है जैसे – मान लीजिए कि आपका फोन स्विच ऑफ है।

इस वक्त आपका ram पूरी तरह खाली है और आपकी RAM प्रयोग नहीं हो रही है। जितने भी एप्लीकेशन हैं सभी आपके फोन स्टोरेज में है या आपके मेमोरी कार्ड में हैं। जैसे ही आप अपने फोन को शुरू करते हैं तो आपका ऑपरेटिंग सिस्टम आपके फोन में लोड हो जाएगा।

यह सिस्टम सबसे पहले आपकी RAM का प्रयोग करेगा और इसके साथ-साथ जितने भी एप्लीकेशन हैं उनको RAM के सहारे शुरू कर देगा। यही वजह है कि सभी एप्लीकेशन बंद करने पर भी आपके फोन की RAM प्रयोग होती रहती है। इसके बाद जब आप अपने मोबाइल पर कोई नई एप्लीकेशन खोलते हैं तो वह RAM में चली जाती है और कुछ एक एप्लीकेशन खोलने के बाद यह फुल हो जाती है।

RAM फुल होने के बाद अगर आप कोई एप्लीकेशन ओपन करते हैं तो वह उसकी जगह बनाने के लिए पुरानी एप को बंद कर देता है। बंद करने का अर्थ यह है कि वह अपने RAM से उस एप्लीकेशन को निकालकर उसको इंटरनल स्टोरेज में भेज देता है। ऐसे प्रोसेस बार-बार करने की वजह से हमारे फोन की स्पीड कम हो जाती है इसलिए जितनी बड़ी RAM होती है उतनी ही मोबाइल स्पीड अधिक रहती है।

ROM का कार्य :

ROM की फुल फॉर्म Read Only Memory है। ROM Esi Memory जहाँ पर हम अपना सारा डाटा सेव करते हैं जैसे – ऑडियो, वीडियो, फोटो, डॉक्यूमेंट और जो सॉफ्टवेयर या एप्स इनस्टॉल करते हैं वो भी ROM में ही सेव होती है। ROM की स्पीड RAM की तुलना में कम होती है। ROM और RAM के प्राइस में बहुत अधिक अंतर होता है जिसका मुख्य कारण है कि RAM की स्पीड अधिक होती है और बनाने में खर्चा ज्यादा आता है।

RAM का कार्य :

RAM की फुल फॉर्म Random Access Memory है। RAM में डाटा केवल तब तक सेव रहता है जब तक इसमें पॉवर सप्लाई रहती है लेकिन जैसे ही इसकी पॉवर बंद होती है आपका डेटा डिलीट हो जाता है। RAM एक Temporary Memory है जो हमारे कंप्यूटर या मोबाइल एप्स और सॉफ्टवेयर को चलाने के काम आती है। जब हम कोई सॉफ्टवेयर या एप शुरू करते हैं तो वह हमारी RAM पर काम करता है लेकिन जब तक वह शुरू नहीं करते हैं तब तक वह ROM में सेव रहता है।

RAM की आवश्यकता :

जब तक सॉफ्टवेयर शुरू होता है और काम करता है तब तक RAM की आवश्यकता होती है क्योंकि हमारा कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से तेजी से काम करवाना चाहता है और ROM की स्पीड बहुत कम होती है और RAM की स्पीड बहुत अधिक। इसलिए हमारा कंप्यूटर सॉफ्टवेयर या एप को RAM पर शुरू करता है ताकि वह सॉफ्टवेयर जल्दी काम करे और जब तक हमारा सॉफ्टवेयर काम करता है तब तक RAM का प्रयोग होता है जैसे ही आप प्रोग्राम बंद कर देते हैं तो आपकी RAM से वो डिलीट हो जाता है लेकिन ROM में सेव रहता है।

ROM और RAM में अंतर :

ROM OR RAM में एक मुख्य अंतर होता है कि जब आप अपना कंप्यूटर बंद कर देते हैं तो RAM अपना डाटा खो देता है लेकिन ROM को अपना काम किसी निरंतर पॉवर की आवश्यकता नहीं होती है। कंप्यूटर के बंद होने के बाद भी ROM अपनी जानकारी को स्टोर कर सकते हैं। ROM चिप का प्रयोग कंप्यूटर को शुरू होने में मदद करती है।

ROM चिप धीरे-धीरे काम करती है। ROM चिप में केवल कुछ मेगाबाइटस का डाटा स्टोर कर सकते हैं और इसका प्रयोग कुछ गेमिंग सिस्टम cartidges में भी होता है। ROM एक नॉन वोलेटाइल मेमोरी है जबकि RAM वोलेटाइल रहता है। रोम में डेटा को परमानेंटली स्टोर किया जा सकता है जबकि RAM में परमानेंटली नहीं किया जा सकता है।

ROM के प्रकार :

ROM 4 प्रकार के होते हैं जो कि इस प्रकार हैं-

1. PROM-(PROGRAMABLE READ ONLY MEMORY)
2. MRON-(MASKED READ ONLY MEMORY)
3. EPROM-(ERASABLE AND PROGRAMABLE READ ONLY MEMORY)
4. EEPROM-(ELECTRICALLY ERASABLE AND PROGRAMABLE READ ONLY MEMORY)
5. EAROM-(ELECTRIC ATERABLE READ ONLY MEMORY)

1.PROM-(PROGRAMABLE READ ONLY MEMORY):

यह एक ऐसा ROM है जिसको हम एक बार चेंज करके अपडेट कर सकते हैं फिर उसको हम कभी अपडेट या चेंज नहीं कर सकते हैं। होता क्या है कि इसमें कुछ छोटे-छोटे फ्यूज होते हैं जिनके अंदर programming के जरिए Instruction डाले जाते हैं फिर इसको एक बार programmed करने के बाद दोबारा से Erase नहीं कर सकते हैं।

यह डिजिटल मेमोरी IC की तरह होती है और इसका उपयोग CRT मोनीटर में किया जाता है। यह एक परमानेंट टाइम प्रोग्राम है और इनमें स्टोर किया हुआ डाटा भी परमानेंट होता है। यह अधिकतर बिजली से चलने वाले डिवाइस में होती है।

2.MROM-(MASKED READ ONLY MEMORY):

इस ROM का पहले बहुत प्रयोग होता था लेकिन अब कोई इसे प्रयोग नहीं करता है यह read only memory hard wired devices है जिसमें से पहले से pre-programmed data और instruction store किया जाता है। उस समय में इस प्रकार के मेमोरी बहुत महंगे होते थे लेकिन आज के समय में ये कहीं नहीं मिलते हैं।

3.EPROM-(ERASABLE AND PROGRAMABLE READ ONLY MEMORY):

यह एक ऐसी चिप है जो कंप्यूटर के बंद होने के बाद कंप्यूटर के डाटा को स्टोर करती है। इसका प्रयोग P.C.O. कंप्यूटर, TV Tunar में किया जाता है। इसमें डाटा को लेजर की मदद से डाला और मिटाया जाता है। इस ROM की खास बात ये है की इसे हम आसनी से erase भी कर सकते हैं और प्रोग्राम भी कर सकते हैं।

लेकिन इस मेमोरी को erase करने का तरीका काफी अलग है जिसमें इस मेमोरी को लगभग 40 मिनट तक Ultra Violet light से पास किया जाता है तब यह मेमोरी खाली होती है। इस काम को प्राप्त करने के लिए “EPROM Eraser” का भी प्रयोग किया जाता है।

प्रोग्रामिंग करते समय इसके भीतर चार्ज को डाला जाता है जो लगभग दस सालों से भी अधिक तक रखा जाता है क्योंकि चार्ज को बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता नहीं होता है इसलिए वह उस मेमोरी के अंदर रह जाता है। इसी चार्ज को Erase करने के लिए अल्ट्रा Violet Light को Quartz Crystal Window के माध्यम से पास किया जाता है। इस लाइट के प्रभाव से ही सब चार्ज Erase हो जाता है।

EPROM के लाभ :

यह बहुत ही सस्ता है। इसे दुबारा प्रोग्राम किया जा सकता है। जब पॉवर सप्लाई नहीं होती है तब भी यह डेटा को Retain किए रहता है। इसमें टेस्टिंग और डिबगिंग किया जा सकता है।

EPROM की हानियाँ :

EPROM में प्रयोग किए जाने वाले ट्रांजिस्टर का प्रतिरोध बहुत उच्च होता है। इसमें बिजली की खपत ज्यादा होती है। इसमें डेटा को मिटाने के लिए पराबैंगनी प्रकाश की आवश्यकता होती है और इसे इलेक्ट्रिकल सिग्नल से इरेज नहीं किया जा सकता। इसमें EEPROM की तरह किसी विशेष बाइट को इरेज नहीं किया जा सकता है यानि इसमें सभी डेटा इरेज हो जाता है। EPROM में डेटा को मिटाने तथा दुबारा प्रोग्राम करने के लिए इसे कंप्यूटर से निकालना पड़ता है। इसमें प्रोग्रामिंग बहुत ही धीमी होती है। PROM की तुलना में इसकी कीमत ज्यादा है।

4.EEPROM-(ELECTRICALLY ERASABLE AND PROGRAMABLE READ ONLY MEMORY):

जब-जब Technology में बदलाव हुआ तब-तब ROM को भी चेंज करने की जरुरत पड़ी इसकी वजह से इसी मेमोरी का प्रयोग हुआ क्योंकि इससे हम 10 हजार बार erase कर सकते हैं और programmed भी कर सकते हैं। इसमें कंप्यूटर के बंद होने के बाद कुछ साइज का डाटा स्टोर होता है। यह कंप्यूटर के मदरबोर्ड से जुड़ा होता है। इसका काम कंप्यूटर को ऑन करना होता है।

यह टयूब लाइटर स्टार्टर की तरह काम करती है। इसमें आप किसी डाटा को रीड कर सकते है, उसे मिटा सकते है या फिर आप उसे दुबारा भी लिख सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको बाइट ( BYTE ) से सिग्नल देने होते है। आजकल ROM में थोड़े बड़े साइज के डाटा को स्टोर करने के लिए कुछ अलग तरह की EEPROM का इस्तेमाल भी होता है। इसका एक लिमिटेड टाइम होता है।

EEPROM के प्रकार :

EEPROM दो प्रकार की होती है – Serial EEPROM और Parallel EEPROM आदि।

1. Serial EEPROM : इसमें डेटा ट्रांसफर क्रमबद्ध होता है और इसकी कार्यविधि बहुत ही जटिल है। क्रमबद्ध डेटा ट्रांसफर होने की वजह से यह पैरेलल से धीमी है।

2. Parallel EEPROM : Parallel EEPROM वह है जो Serial EEPROM से तेज है और विश्वसनीय भी है और इसका प्रयोग EPROM तथा फ्लैश मैमोरी के साथ किया जा सकता है। लेकिन इनका मूल्य ज्यादा होने की वजह से इन्हें बहुत कम प्रयोग किया जाता है।

EEPROM के फायदे :

इसमें इलेक्ट्रिकल विधि से डेटा को इरेज किया जाता है जो तेज विधि है। इसमें हम पूरे डेटा को मिटा सकते हैं और डेटा एक बाइट को भी। डेटा को इरेज करने के लिए इसे कंप्यूटर से नहीं निकालना पड़ता है। इसे प्रोग्राम करना बहुत ही आसान है। EEPROM को अनगिनत बार रिप्रोग्राम किया जा सकता है।

EEPROM की हानियाँ :

EEPROM, PROM और EPROM की तुलना में महंगी है। EEPROM में डेटा को रीड, राइट और इरेज करने के लिए अलग-अलग वोल्टेज की जरूरत होती है। यह डेटा सिर्फ लगभग 10 साल तक retain कर सकता है।

5. EAROM (ELECTRIC ATERABLE READ ONLY MEMORY):

यह एक सेमी कंडक्टर के समान दिखाई देती है जिसमें आप कुछ इलेक्ट्रिक सिग्नल देकर जो बदलाव करना चाहते हैं वो कर सकते हैं। यह RAM के साथ मिलकर कंप्यूटर को ऑन करने और डिसप्ले को लाने में मदद करती है। यह भी एक IC के समान दिखाई देती है।

BIOS (BASIC INPUT OUTPUT SYSTEM):

यह एक माइक्रोप्रोसेसर की तरह होती है जो ROM के साथ मिलकर कंप्यूटर सिस्टम को ऑन करने में सहायक होती है। यह कंप्यूटर से जुड़े हुए डिवाइस जैसे – माउस, कीबोर्ड, हार्डडिस्क और वीडियो एडाप्टर के और कंप्यूटर ऑपरेटर के मध्य के डाटा के बहाव को भी नियंत्रित करती है।

ROM Ke Fayde:

1. ROM RAM से बहुत सस्ता होता है।
2. ROM का डाटा अपने आप नहीं बदलता है बल्कि जब हम इसमें कुछ बदलाव करते हैं तभी बदलाव होता है।
3. यह Non-Volalite प्रकृति का है जो प्रोग्राम को स्थाई बनाए रखता है।
4. इसको refresh करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
5. यह RAM से अधिक भरोसेमंद है क्योंकि RAM में डाटा तब तक रहता है जब तक पॉवर सप्लाई रहती है।
6. इसमें बहुत ही सोच समझ कर डाला जाता है जिसको हम बार-बार बदल नहीं सकते हैं।